अनुभव गुप्ता, नई दिल्ली।
महाशिवरात्रि पर आज द्वारका के रुक्मिणी द्वारकाधीश इस्कॉन मंदिर में भी खास इंतजाम किया गया है। परिक्रमा लगाकर श्रद्धालु यहां मानसरोवर के जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक कर रहे हैं।
मन्दिर के प्रमुख सेवादारों में से एक प्रशांत मुकुंद दास का कहना है, की शिवजी स्वयं कहते हैं की “भगवन्तं वासुदेवं प्रपन्नः स प्रियो हि में” निश्चित ही जो भक्त भगवान वासुदेव, राम और कृष्ण के शरणागत हैं, वही मुझे सबसे प्रिय है। मैं उनसे बहुत प्रेम करता हूँ, जो भगवान कृष्ण की भक्ति करते हैं।
इसलिए सुबह 9 बजे से ही यहाँ पवित्र मानसरोवर का जल भक्तों के लिए उपलब्ध करवाया गया। जो मंदिर की काँवड़-परिक्रमा लगाने के बाद श्रद्धालुओं को उपलब्ध करवाया गया था। इसे शिव मंदिर में शिवलिंग पर अर्पित किया जा रहा था।
सुबह सबसे पहले सुप्रसिद्ध कथावाचक द्वारा शिवजी का स्तुतिगान किया गया। क्योंकि भगवान शिव वैष्णवों में श्रेष्ठ हैं, उनसे बड़ा कोई वैष्णव नहीं है। श्रीमद्भागवतम् के द्वादश स्कंध के तेरहवें अध्याय में इसका उल्लेख किया गया है।
लोग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए करुणावतार शिवजी की भक्ति करते हैं। व्रत करते हैं, अनेक पूजा-पाठ कर भोले बाबा को प्रसन्न करते हैं। लेकिन सही मायनो में स्वयं शिवजी कैसे प्रसन्न होते हैं! सबसे ज्यादा किसे पसंद करते हैं! वह उसे प्रेम करते हैं जो भगवान विष्णु के भक्त हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज शनिवार को श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर, इस्कॉन द्वारका सेक्टर-13 में महाशिवरात्रि उत्सव आयोजित किया जा रहा है।
जैसे नदियों में श्रेष्ठ गंगा है, सभी देवताओं में श्रेष्ठ भगवान विष्णु हैं, सभी पुराणों में श्रेष्ठ श्रीमद्भागवतम् है, उसी तरह सभी लाखों-करोड़ों वैष्णवों में श्रेष्ठ भगवान शिव हैं। भगवान शिव से बड़ा कोई वैष्णव नहीं है। उनमें वैष्णवों के सभी 26 गुण हैं। भगवान शिव की आराधना का अर्थ सभी मानव-जीवों को बराबर समझना, प्रेम करना और आपस में भेदभाव न करना। अगर मन में किसी दूसरे के प्रति घृणा का भाव है, तो शिव की पूजा-आराधना बेकार है। भगवान शिव की आराधना का अर्थ है माँस, मछली और नशे से दूर रहना। शिव पुराण में कहीं भी नशे के पक्ष का उल्लेख नहीं मिलता।