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चंद्रशेखर आजाद ने मध्‍य प्रदेश के इस ज‍ि‍ले में तीर चलाना सीखा, यहां आज भी मौजूद बमों के निशां

आदिवासी भील बच्चों के साथ चन्द्रशेखर आजाद ने तीर कमान चलाना सीख लिया. बालक चंद्रशेखर घंटों आदिवासी बच्चों के साथ भाबरा की पुरानी गढ़ी में तीर-कमान लेकर निशाना लगाने का अभ्यास किया करते थे. यह अभ्यास अंग्रेजों से लड़ाई में उन्हें खूब काम आया.

आलीराजपुर/चंद्रशेखर आजादनगर:  चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि ”दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.” एक वक्त था जब उनके इस नारे को हर युवा दोहराता था. चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय क्रांति के नायक रहे. उनके अंदर देशभक्ति का जज्बा मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा (जो अब चंद्रशेखर आजाद नगर) से जागा था. आजाद ने इसी भूमि पर स्थित पुरानी गढ़ी क्षेत्र में बच्चों के साथ तीर चलाना सीखा था. इसी मिट्टी ने उन्हें आजाद बनाया था.

अलीराजपुर में तीर चलाना सीखा
आपको बता दें कि चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 में मध्य प्रदेश के वर्तमान जिले अलीराजपुर के भाबरा गांव में हुआ था. तब अलीराजपुर रियासत हुआ करता था. माता-पिता ने 6 साल की उम्र में चंद्रशेखर का दाखिला गांव के प्राथमिक विद्यालय में करवा. उस विद्यालय में आदिवासी भील बच्चों के साथ उन्होंने तीर कमान चलाना सीख लिया. बालक चंद्रशेखर घंटों आदिवासी बच्चों के साथ भाबरा की पुरानी गढ़ी में तीर-कमान लेकर निशाना लगाने का अभ्यास किया करते थे. यह अभ्यास अंग्रेजों से लड़ाई में उन्हें खूब काम आया.

खनियांधान आजाद की कर्मभूमि
चंद्रशेखर आजाद बहुचर्चित काकोरी कांड के बाद अज्ञातवास में चले गए थे. अज्ञातवास के कई महीने उन्होंने मध्य प्रदेश के शिवपुरी क्षेत्र के खन‍ियांधाना के समीप स्थित सीतापाठा में बिताए थे. यहीं पर उन्होंने बमों का परीक्षण भी किया, उन बमों से बने निशान आज भी यहां देखे जा सकते हैं. आजाद ने सिर्फ बमों का परिक्षण ही नहीं किया बल्कि अपने कई क्रांतिकारी साथियों को यहां गोली चलाने की ट्रेनिंग भी दी. इतना ही नहीं चंद्रशेखर आजाद का मूंछों पर ताव देता हुआ एकमात्र फोटो जो है, वह भी खन‍ियांधाना के कलाकार की ही देन है.

कर्मभूमि को नहीं मिली पहचान
खन‍ियांधाना को चंद्रशेखर आजाद की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है. मगर इस जगह को वैसी पहचान नहीं मिल सकी, जैसी मिलनी चाहिए थी. जहां आजाद ने बमों के परीक्षण किए, उसे कभी पर्यटन के मानचित्र पर उकेरा नहीं गया. जबकि चंद्रशेखर आजाद की यह कर्मस्थली देश के लिए एक देशभक्ति-तीर्थ की तरह विकसित की जा सकती है.

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