हैरान कर देगा मोहम्मद रफी साहब का ये किस्सा, गाना गाते-गाते मोहम्मद रफी के गले से क्यों बहने लगा था खून
मोहम्मद रफी साहब का ये किस्सा, गाना गाते-गाते मोहम्मद रफी के गले से क्यों बहने लगा था खून

वैसे तो इस फिल्मी दुनिया में कई कलाकार ऐसे रहे हैं जो बेशक आम लोगों की पहुंच से कोसों दूर हों, लेकिन अपनी कला के जरिए वह हर दिल में बसे. ऐसे ही कलाकारों में एक नाम मोहम्मद रफी का भी शुमार है. उनके नग्में आज भी लोगों को किसी भी हालात में अकेला नहीं छोड़ सकते. उनके गाने अगर आपको थिरकने पर मजबूर कर देते हैं, तो वहीं, महबूबा से अपने दिल की बात कहने और बिरहा में जल रहे आशिकों की कहानी भी बयां कर देते हैं.
मोहम्मद रफी की आवाज का जादू ही कुछ ऐसा था कि आज भी उनके गाने कभी पुराने नहीं लगते. इन्हें जितनी बार सुनो, यह मन में वही जोश और ताजगी भर देते हैं. सुरों के इस फनकार ने 31 जुलाई 1980 को हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
मोहम्मद रफी का संगीत सुन आज भी लोग इसलिए मदहोश हुए जाते हैं, क्योंकि रफी साहब खुद भी संगीत के लिए दीवाने थे. म्यूजिक के लिए उनका प्यार उनके हर गाने में झलकता है.
वैसे तो रफी साहब का हर गाना यादगार है सभी के पीछे एक मजेदार किस्सा छिपा होता था. हालांकि, आज हम आपके सामने उनके उस गाने के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसे गाते हुए उनके गले से खून बहने लगा था. इस किस्से का जिक्र म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद की बायोग्राफी ‘नौशादनामा: द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ नौशाद’ में भी किया गया है.
दरअसल, 1952 में रिलीज हुई फिल्म ‘बैजू बावरा’ में मोहम्मद रफी ने ‘ओ दुनिया के रखवाले’ गाना गाया था. यह गाना सुपरहिट रहा, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस गाने के लिए रफी साहब ने कड़ी मेहनत की थी.
उन्हें इस गाने के लिए कई दिनों तक घंटों-घंटों बैठकर रियाज करना पड़ता था. क्योंकि, इस गाने के लिए उन्हें अपनी आवाज को काफी ऊंचे स्केल पर रखना पड़ता था.
कई दिनों की मेहनत के बाद आखिरकार यह गाना पूरा हो ही गया. कहते हैं कि गाने की फाइनल रिकॉर्डिंग की खत्म होने तक मोहम्मद रफी के गले से खून तक बहने लगा था. उनके गले की हालत काफी खराब हो चुकी थी. इसके बावजूद उन्होंने कभी इसकी शिकायत या अपनी तकलीफ नौशाद को नहीं बताई, जो इस फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर थे. हालांकि, इसके बाद कई दिनों तक रफी कोई गाना नहीं गा पाए थे